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कार्यकाल विस्तार से जुड़े केंद्र के नए नियमों के बाद नौकरशाहों ने उत्तराधिकार पर जताई चिंता

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एक वरिष्ठ नौकरशाह ने एनडीटीवी से कहा, सरकार द्वारा संस्थानों को लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है. अब वरिष्ठता या ग्रेड कोई मायने नहीं रखता है.

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सीबीआई (CBI), ईडी (ED) जैसी एजेंसियों के सेवारत अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाने के लिए नियमों में जो बदलाव किया है, उसको लेकर तमाम अधिकारी नाखुश बताए जाते हैं. नियमों में इस बदलाव से कई नए सवाल खड़े हो गए हैं. नए नियमों के अनुसार, केंद्र सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए रक्षा सचिव, गृह सचिव, इंटेलीजेंस ब्यूरो, रॉ सचिव, ईडी के निदेशक को केस बाई केस के आधार पर सेवा विस्तार दे सकती है. यह ऐसे सचिवों या निदेशकों के कुल कार्यकाल पर निर्भर करेगा.

कार्मिक मंत्रालय ने अधिसूचना में कहा है कि ऐसे सचिवों या निदेशकों का कार्यकाल दो साल से अधिक नहीं होगा, बशर्ते इस कानून या नियमों के जरिये ऐसा करने का अधिकार न दिया गया हो. केंद्र के इस नए नियम से इन एजेंसियों और मंत्रालयों में मौजूदा प्रमुखों के उत्तराधिकारियों को लेकर बनी चेन पर भी असर पड़ना तय है, जिसने पूरी नौकरशाही (bureaucracy) को हिलाकर रख दिया है. कई सेवारत अधिकारियों ने NDTV से बातचीत में इसको लेकर नाखुशी जताई.

एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने कहा, कई वरिष्ठ नौकरशाहों के मन में इसको लेकर टीस होगी. हर बार कम से कम तीन से चार बैच इसके कारण पूरी तरह खत्म हो जाएंगे. उन्होंने कहा, इससे इन संगठनों में कार्यरत अधिकारियों के मनोबल पर भी असर पड़ेगा. कई दशकों तक ऐसे अधिकारियों ने इस उम्मीद के साथ काम किया है कि एक दिन वो शीर्ष पर पहुंचेंगे. लेकिन अब उन्हें वहां तक पहुंचने के लिए कई तरह के स्किल की जरूरत पड़ेगी.

एक अन्य वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट ने कहा, “सरकार द्वारा संस्थाओं को ध्वस्त किया जा रहा है. अब सीनियरटी या ग्रेड का कोई महत्व ही नहीं रह गया है. यह इस बारे में है कि कौन सा अधिकारी चुनिंदा रूप से किसके खिलाफ कानून लागू कर सकता है.” एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, जब हम सेवा में आते हैं तो हम संविधान की शपथ लेकर कानून का शासन कायम रखने की शपथ लेते हैं, लेकिन कार्यकाल का विस्तार पाए अधिकारी सत्ता में बैठे शख्स पर ध्यान देते हैं, न कि संविधान पर. ऐसे लोग सरकार को उनके राजनीतिक उद्देश्यों को पाने में मदद करते हैं.


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